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भोपाल.
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं खजुराहो सांसद श्री विष्णुदत्त शर्मा ने शुक्रवार को कुशाभाऊ ठाकरे सभागार पहुंचकर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के भोपाल आगमन को लेकर निरीक्षण कर आवश्यक दिशा निर्देश दिए। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व सांसद श्री विष्णुदत्त शर्मा ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी अपने व्यस्तम समय के बावजूद भाजपा प्रदेश संगठन के लिए समय निकालकर 23 फरवरी को कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में पार्टी पदाधिकारियों और सांसद-विधायकों से संवाद करेंगे। यह मध्यप्रदेश के लिए सौभाग्य की बात है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी दो दिन तक प्रदेश की धरती पर रहेंगे। हम सब पार्टी के कार्यकर्ता प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के स्वागत को लेकर उत्साह और उमंग के साथ जुटे हुए हैं। श्री शर्मा ने कहा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी 23 फरवरी को भोपाल आगमन से पहले धर्म एवं आध्यात्मिक केंद्र बागेश्वर धाम में कैंसर अस्पताल की आधारशिला रखेगे। 24 फरवरी को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का शुभारंभ करेंगे।
अमित शाह जी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट समापन कार्यक्रम में शामिल होंगे
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री विष्णुदत्त शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के दिल में हमेशा मध्यप्रदेश रहा है और उनका आर्शीवाद हमेशा प्रदेश को मिलता रहा है। देश की जनता प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और भारतीय जनता पार्टी को लगातार आर्शीवाद देती आ रही है। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का शुभारंभ देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और समापन समारोह में 25 फरवरी को केन्द्रीय गृह और सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह जी शामिल हो रहे हैं।
आज का विकसित मध्यप्रदेश ही भाजपा सरकारों के काम का हिसाब है
प्रदेश अध्यक्ष व खजुराहो सांसद श्री विष्णुदत्त शर्मा ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिधार की पत्रकार-वार्ता पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कांग्रेस हमेशा झूठ, छल, कपट की नकारात्मक राजनीति करती रही है। इसलिए कोई अच्छी बात कभी कांग्रेस के नेताओं के मुंह से निकलती ही नहीं है। उन्होंने कहा कि 2003 से पहले मध्यप्रदेश एक बीमारू राज्य था और दुरावस्था का शिकार था। प्रदेश की जनता कांग्रेस पार्टी से 2003 के पहले के उस मध्यप्रदेश की दुरावस्था का हिसाब मांगती है, क्या जीतू पटवारी ये हिसाब जनता को दे पाएंगे? श्री शर्मा ने कहा कि 2003 के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने मध्यप्रदेश को खुशहाली और विकास के रास्ते पर आगे बढाना शुरू किया। प्रदेश में हुए इस विकास का हिसाब मध्यप्रदेश की जनता दे रही है। उन्होंने कहा कि आज जो विकसित मध्यप्रदेश और कानून व्यवस्था की जो सुदृढ़ स्थिति दिखाई देती है, यह भाजपा की सरकारों के काम का हिसाब है। श्री शर्मा ने कहा कि आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के आशीर्वाद और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रयासों से मध्यप्रदेश सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सहित हर क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है। निरीक्षण के दौरान प्रदेश उपाध्यक्ष श्री कांतदेव सिंह, प्रदेश महामंत्री व विधायक श्री भगवानदास सबनानी, महापौर श्रीमती मालती राय, वरिष्ठ नेता श्री शैलेन्द्र शर्मा, प्रदेश प्रवक्ता श्री पंकज चतुर्वेदी, जिला अध्यक्ष श्री रविन्द्र यति एवं पूर्व जिला अध्य्क्ष श्री सुमित पचौरी उपस्थित रहे।
क्या है स्टील्थ टेक्नोलॉजी, पहले इसे समझते हैं
स्टील्थ टेक्नोलॉजी किसी वस्तु को रडार, इन्फ्रारेड, सोनार और अन्य तरीकों से पता लगाने की दूरी को कम करने की तकनीक है। इसे एलओ तकनीक (Low Observable Technology) भी कहा जाता है। यह वस्तु को पूरी तरह से अदृश्य नहीं बनाती है। रडार ऑपरेटरों के लिए उसे पता लगाना और ट्रैक करना मुश्किल बना देती है। इसका इस्तेमाल विमानों, जहाजों, पनडुब्बियों और मिसाइलों को बनाने में किया जाता है।
Stealth Fighter Jet
कैसे काम करती है यह तकनीक, कमाल की कलाकारी
स्टील्थ टेक्नोलॉजी में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेरेंस (EMI) शील्डिंग में मदद करता है। नैनो टेक्नोलॉजी ने इस तकनीक को और भी बेहतर बना दिया है। कई नैनोमटेरियल्स में से कार्बन नैनोट्यूब्स (CNTs) RAMs और EMI शील्डिंग मटेरियल्स के सबसे अच्छे विकल्पों में से एक हैं। ये इस तरह से बने होते हैं कि इनमें बेहतरीन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक, मैकेनिकल और केमिकल गुण आ जाते हैं। ये रेडियो तरंग विकिरण को कम करने में मदद करते हैं। इससे सैन्य और असैन्य दोनों क्षेत्रों में फायदा होता है। सोचिए, अगर आपकी कार पर CNTs की कोटिंग हो तो रडार आपको भी नहीं पकड़ पाएगा! या फिर आपके घर की दीवारों पर CNTs का इस्तेमाल किया जाए तो बाहर का शोर अंदर नहीं आएगा। यह तकनीक वाकई कमाल की है।
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ये तीन बातें स्टील्थ टेक्नोलॉजी में निभाती हैं अहम भूमिका
स्टील्थ तकनीक जांच करने वाले रडार पर वापस परावर्तित होने वाली शक्ति को कम से कम करने की अनुमति देती है। स्टील्थ टेक्नोलॉजी में ये तीन बातें अहम होती हैं। इनमें रडार की तरंगों को सोखने की क्षमता वाली खास मैटीरियल्स होते हैं, जिससे परावर्तित ऊर्जा कम हो जाती है। इससे रडार स्क्रीन पर स्टील्थ टेक्नोलॉजी वाला विमान या पनडुब्बियां दिखाई नहीं देती है। दूसरा, स्टील्थ टेक्नोलॉजी से लैस विमानों या हथियारों की अनोखी आकृतियां होती हैं जो रडार तरंगों को सोर्स से दूर कर देती हैं, जिससे उनकी वापसी कम हो जाती है। साथ ही उस विमान या हथियार का डिजाइन इतना तीखा या घातक कोणीय होता है कि उसके किनारे तरंगों को बिखरने में मदद करते हैं। उन्नत इंजन डिजाइन और निकास प्रणालियां स्टील्थ प्लेटफार्मों की गर्मी और इन्फ्रारेड सिगनल्स को कमजोर कर देती हैं।
क्यों स्टील्थ तकनीक से लैस विमान बनते हैं घातक
स्टील्थ तकनीक सैन्य प्लेटफॉर्मों की पता लगाने की क्षमता को काफी हद तक कम कर देती है, जिससे वे बिना पकड़ में आए दुश्मन के इलाके में पहुंच सकते हैं और गुप्त ऑपरेशन चला सकते हैं। स्टील्थ तकनीक से लैस विमान दुश्मन के रडार की पकड़ में नहीं आते हैं। उन्हें ट्रैक करना और उनसे भिड़ना मुश्किल हो जाता है। इससे बिना पकड़े गए महत्वपूर्ण और खुफिया जानकारी जुटाने में यह तकनीक सक्षम बनाती है।
स्टील्थ तकनीक के पीछे रडार तकनीक
दरअसल, कोई रडार का एंटिना रेडियो एनर्जी के कई बंडल्स भेजते हैं जो विमानों या पनडुब्बियों से टकराकर वापस लौट आते हैं। इससे रडार का एंटिना परावर्तन तक पहुंचने में लगने वाले समय को मापता है और उस जानकारी से यह बता सकता है कि विमान या पनडुब्बी कितनी दूर है। विमान की बॉडी रडार संकेतों को लौटा देती है। इससे रडार उपकरणों की सहायता से हवाई जहाज का सटीक आकलन करना और उसका पता लगाना आसान हो जाता है।
पारंपरिक विमानों से कितने अलग होते हैं ऐसे जेट
अधिकांश पारंपरिक विमानों का आकार गोल होता है। यह आकार उन्हें वायुगतिकीय बनाता है, लेकिन यह एक बहुत ही कुशल रडार परावर्तक भी बनाता है। गोल आकार का मतलब है कि रडार सिग्नल विमान से कहीं भी टकराए कुछ सिग्नल परावर्तित हो ही जाते हैं। वहीं, एक स्टील्थ विमान पूरी तरह से सपाट सतहों और बहुत तेज किनारों से बना होता है। जब एक रडार सिग्नल स्टील्थ विमान से टकराता है, तो सिग्नल एक कोण पर परावर्तित होता है। इसके अलावा, स्टील्थ विमान की सतहों को इस तरह से ट्रीटमेंट किया जा सकता है कि वे रडार एनर्जी को भी सोख सकें।
अमेरिका ने 43 साल पहले बना लिया था पहला स्टील्थ विमान
अमेरिकी वायु सेना के लिए लॉकहीड कॉर्पोरेशन (अब लॉकहीड मार्टिन कॉर्पोरेशन का हिस्सा) ने F-117 बनाया था। यह एक सिंगल-सीट, ट्विन-इंजन वाला जेट फाइटर-बॉम्बर था। यह पहला स्टील्थ विमान था। यानी, इसे रडार और दूसरे सेंसर्स से बचने के लिए डिजाइन किया गया था। इसके विकास में काफी मुश्किलें आईं। टेस्टिंग के दौरान कई प्रोटोटाइप क्रैश हो गए। इसके बाद, पहला F-117 चुपके से 1982 में वायु सेना को दिया गया। बाद में इनका विकास और हुआ। अमेरिका ने स्टील्थ विमानों से ही इराक युद्ध में बम बरसाए। यहां तक कि अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए भी इनका इस्तेमाल किया गया था।
अमेरिका ने लादेन को मारने के लिए इसी तकनीक का लिया सहारा
अमेरिका ने 2 मई, 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में छिपकर रहे अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए अमेरिकी नेवी सील ऑपरेशन में अति गोपनीय स्टील्थ हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया था। कई सैन्य विश्लेषकों का मानना है कि हमले में इस्तेमाल किए गए दो ब्लैकहॉक हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि, एक पूर्व अमेरिकी विशेष अभियान एक्सपर्ट ने बताया था कि क्षतिग्रस्त हुए ब्लैकहॉक का डिजाइन F-117 स्टील्थ फाइटर के धड़ जैसा था, जिसे रडार से छिपने के लिए डिजाइन किया गया था।
क्या चीन और पाकिस्तान के खतरे को देखते हुए यह तकनीक अहम
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय वायुसेना राय मांगे जाने पर सरकार को यह सलाह देगी कि वह स्टील्थ जंगी विमान ही खरीदे। दरअसल, इस तरह के विमानों की जरूरत आज है। खासकर, चीन और पाकिस्तान के बढ़ते हुए खतरे को देखते हुए ऐसे विमानों की ज्यादा जरूरत है। बताया जा रहा है कि स्टील्थ टेक्नोलॉजी हासिल करने वाला चीन कथित तौर पर पाकिस्तान को पांचवीं पीढ़ी के 40 लड़ाकू विमान बेच रहा है। बीजिंग अपनी छठी पीढ़ी के जेट भी बना रहा है।
भारत भी विकसित कर रहा स्टील्थ एयरक्रॉफ्ट
वैसे तो भारत खुद का स्टील्थ टेक्नोलॉजी से लैस जंगी विमान बनाने में जुटा है। अभी यह तकनीक दुनिया में केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही है। हाल ही में भारत में बनने वाले पांचवीं पीढ़ी के एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) का मॉडल एयरो इंडिया के इंडिया पवेलियन में प्रदर्शित किया गया है। इस स्वदेशी जेट की उड़ान भरते देखने में अभी 2-3 साल और लगेंगे। भारतीय वायु सेना और नौसेना के लिए पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ, मल्टीरोल, एयर सुपीरियॉरिटी फाइटर में छठी पीढ़ी की एडवांस्ड तकनीक भी शामिल होंगी। यह वायु सेना में स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस, सुखोई-30 एमकेआई, राफेल और नौसेना के एचएएल नेवल तेजस और मिग-29 की जगह लेगा। इसके 2028 तक वायुसेना के जंगी बेड़े में शामिल होने की उम्मीद है।
दूसरे विश्व युद्ध में जर्मन यू-बोट में पोते गए थे रडार रोधी केमिकल
रडार के आविष्कार के तुरंत बाद एंटीडिटेक्शन तकनीक में रिसर्च शुरू हुई। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनों ने अपने यू-बोट स्नोर्कल पर रडार के रेडिएशन को सोखने वाले पेंट का लेप किया। युद्ध के बाद के युग में रिसर्चरों ने रडार प्रतिध्वनि की प्रकृति की खोज करने की कोशिश की। तभी यह पता लगाया गया कि रडार से भेजी जाने वाली तरंगें जब किसी वस्तु से टकराती हैं तो वो किन वजहों से वो तरंगें लौट नहीं पाती हैं या सोख ली जाती हैं। उसी वक्त यह पता लगा कि कुछ खास तरह की डिजाइन, आकार, सतह और ढांचे से ये तरंगें लौट नहीं पाती हैं। 1980 के दशक तक अमेरिका ने स्टील्थ तकनीक के मॉडल विकसित किए थे, जिसमें एक प्रोटोटाइप स्टील्थ बॉम्बर भी शामिल था।