
नई दिल्ली
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए नया यात्रा प्रतिबंध लगाया है, जो 19 देशों पर लागू होते हैं। जिन देशों पर ये बैन लगाए गए हैं, उनमें मुख्य रूप से अफ्रीका और पश्चिम एशिया के देश शामिल हैं। इनमें 12 देश ऐसे हैं, जिसके नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इनमें अफगानिस्तान, म्यांमा, चाड, कांगो गणराज्य, इक्वेटोरियल गिनी, इरीट्रिया, हैती, ईरान, लीबिया, सोमालिया, सूडान और यमन शामिल हैं। इसके अलावा सात अन्य देशों से आने वाले नागरिकों पर भी आंशिक पाबंदियां लगाई गई हैं। इनमें बुरुंडी, क्यूबा, लाओस, सिएरा लियोन, टोगो, तुर्कमेनिस्तान और वेनेजुएला शामिल हैं।
इस अपडेटेड लिस्ट में देशों को शामिल करते हुए तर्क दिया गया है कि इनसे अमेरिका को सुरक्षा खतरा है लेकिन पाकिस्तान पर डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने पिछले ढाई महीने में यू-टर्न लेते हुए अलग रुख दिखाया है। मार्च तक पाकिस्तान को भी इस लिस्ट में शामिल किए जाने की चर्चा चल रही थी लेकिन अब जब लिस्ट सामने आई है तो उससे पाकिस्तान का नाम गायब है। दिलचस्प यह भी है कि पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी रुख में यह नरमी तब आई है, जब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सबसे खराब और तनावपूर्ण दौर में हैं। बड़ी बात यह है कि अमेरिकी अधिकारियों द्वारा लंबे समय से पाकिस्तान पर आतंकवादी नेटवर्क को पनाह देने का आरोप लगाया जाता रहा है, बावजूद इसके यात्रा प्रतिबंध वाले देशों की लिस्ट से पाकिस्तान का नाम गायब है। पाकिस्तान को इस लिस्ट से बाहर रखने का यह हालिया फैसला डोनाल्ड ट्रम्प के पिछले राष्ट्रपति के कार्यकाल (2017 से 2021 तक) के दौरान उनके कार्यों और बयानों के बिल्कुल विपरीत है, जब उन्होंने इस्लामाबाद द्वारा आतंकवाद के कथित समर्थन पर काफी सख्त रुख अपनाया था।
ट्रंप के रुख में अचानक बदलाव क्यों?
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च में ट्रंप प्रशासन के एक आंतरिक ज्ञापन ने पुष्टि की थी कि सुरक्षा खतरों के रूप में पाकिस्तान को भी यात्रा प्रतिबंध वाली संशोधित सूची में शामिल करने पर विचार किया गया था लेकिन अब जब अंतिम सूची जारी की गई, तो उससे पाकिस्तान का नाम हटा दिया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अचानक यह बदलाव तब किया गया है, जब पाकिस्तान और ट्रम्प परिवार से जुड़ी व्यापारिक संस्थाओं के बीच व्यावसायिक और राजनीतिक संबंध गहरे हो रहे हैं।
ध्यान देने वाली बात है कि ये वही डोनाल्ड ट्रंप हैं, जिन्होंने 2018 में कहा था कि अल-कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को छिपाने में पाकिस्तान की मिलीभगत थी। उन्होंने तब कहा था, "पाकिस्तान में सैन्य अकादमी के ठीक बगल में रहने के कारण, पाकिस्तान में हर कोई जानता था कि लादेन वहीं है।" ट्रंप ने यह भी कहा था कि पाकिस्तान आतंकवादियों का पनाहगाह है और इस वजह से अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता में 300 मिलियन डॉलर की कटौती की थी। इसके बाद अमेरिका ने 2019 में कई पाकिस्तानी अधिकारियों और सरकार के प्रतिनिधियों पर वीजा बैन भी लगाया था।
ट्रंप परिवार से क्या कनेक्शन?
दरअसल, पाकिस्तान के प्रति ट्रंप की नरमी का यह रुख इसलिए सामने आया है क्योंकि पाकिस्तान और वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल (WLF) के बीच क्रिप्टोकरेंसी को लेकर अप्रैल में एक समझौता हुआ है। WLF संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित एक फिनटेक फर्म है और कथित तौर पर WLF ट्रम्प परिवार के सदस्यों से जुड़ा हुआ है, जिसमें एरिक ट्रम्प, डोनाल्ड ट्रम्प जूनियर और जेरेड कुशनर शामिल हैं। ये लोग सामूहिक रूप से WLF के स्वामित्व में बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं। अप्रैल में हस्ताक्षरित इस समझौते में पाकिस्तान में ब्लॉकचेन इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना और राष्ट्रीय संपत्तियों को टोकन करना शामिल है। अप्रैल में जब इस्लामाबाद में WLF का प्रतिनिधिमंडल यह समझौता करने पहुंचा तो उसमें ट्रंप के पुराने मित्र और मध्य-पूर्व में अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ के बेटे जैचरी विटकॉफ भी शामिल थे।
पाक सेना प्रमुख, पीएम और मंत्रियों ने बिछाए थे पलक पवाड़े
पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने खुद आगे बढ़कर WLF प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया था। बाद में इस प्रतिनिधिमंडल से खुद प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, उप प्रधानमंत्री इशाक डार और रक्षा और सूचना मंत्रियों सहित शरीफ सरकार की बड़ी हस्तियों ने भी मुलाकात की थी। तभी से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि इन हस्तियों की बैठकों में मौजूदगी से साफ है कि यह कोई साधारण वाणिज्यिक समझौता नहीं था। अब ट्रंप ने पाकिस्तान को उस लिस्ट से बाहर कर उस गठजोड़ का खुलासा खुद कर दिया है।