मध्य प्रदेशराज्य

चंगेज खान के देश मंगोलिया भेजा जाएगा 5 दिन के लिए धातु कलश, 73 साल में दूसरी बार होगा सांची से बाहर

भोपाल
विश्व धरोहर सांची स्थित चेतियागिरि विहार से गौतम बुद्ध के परम शिष्यों सारिपुत्र और महामोग्गलायन के पवित्र अस्थि कलश (धातु कलश) को अब 15 दिन के लिए मंगोलिया भेजा जाएगा। यह कदम भारत सरकार के सांस्कृतिक मिशन का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य बौद्ध धर्म से जुड़े देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना है। यह 73 वर्षों में दूसरी बार होगा जब ये कलश सांची से बाहर ले जाए जाएंगे।
 
मंगोलिया में होता है तिब्बती बौद्ध परंपरा का पालन
ध्यान देने वाली बात यह है कि मंगोलिया, जो कभी चंगेज खान के साम्राज्य का केंद्र रहा था, आज तिब्बती बौद्ध परंपरा का पालन करता है। ऐसे में इन पवित्र अवशेषों का वहां पहुंचना बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा। मिशन की तैयारियां विदेश मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय के समन्वय में चल रही हैं। संस्कृति मंत्रालय ने मध्य प्रदेश सरकार से इस योजना को लागू करने में सहयोग मांगा है। रायसेन जिला प्रशासन को इस कार्य का जिम्मा सौंपा गया है। प्रशासन ने सांची स्थित महाबोधि सोसायटी से विधिवत अनुमति ली है।

कलश को धार्मिक विधि-विधान से किया जाएगा विदा
महाबोधि सोसायटी ऑफ सांची के भिक्षु इंचार्ज स्वामी विमल तिस्स थेरो ने बताया कि उन्होंने धातु कलश को मंगोलिया भेजने की सहमति दे दी है। जिला प्रशासन के अनुसार, जैसे ही संस्कृति विभाग अंतिम यात्रा की व्यवस्था कर लेगा, कलश को पूरे धार्मिक विधि-विधान से विदा किया जाएगा। यात्रा के दौरान सांची से कुछ भिक्षु भी साथ जाएंगे, ताकि प्रतिदिन पूजन और परंपरा अनुसार सम्मान बना रहे।

क्या है इन धातु कलश का इतिहास और महत्व?
इन पवित्र अवशेषों की खोज 1851 में जनरल कनिंघम ने सांची स्तूप नंबर 3 की खुदाई के दौरान की थी। आजादी से पहले ये अवशेष ब्रिटेन में रहे, लेकिन 30 नवंबर 1952 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में इन्हें चेतियागिरि विहार में स्थापित किया गया।

पिछले वर्ष 28 दिन के लिए भेजा था थाइलैंड
पिछले साल थाइलैंड सरकार के आग्रह पर 28 दिन के लिए पवित्र अस्थि कलश को वहां भेजा गया था। थाइलैंड के बौद्ध प्रतिनिधिमंडल ने इन्हें दिल्ली में प्राप्त किया था। थाइलैंड में चार स्थानों पर भव्य कार्यक्रम हुए, जहां लाखों की संख्या में बौद्ध अनुयायियों ने इनके दर्शन किए थे।

क्यों महत्वपूर्ण हैं ये धातु कलश?
बौद्ध परंपरा में सारिपुत्र और महामोग्गलायन को भगवान बुद्ध के दाएं और बाएं स्थान पर बैठने का गौरव प्राप्त है। इन्हें धम्म और अभिधम्म का सर्वोच्च ज्ञाता माना जाता है। बुद्ध के जीवनकाल में ही उनका परिनिर्वाण हो गया था। इसलिए उनके पवित्र अवशेषों का धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button