
भोपाल
मध्यप्रदेश में पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा में सामने आए फर्जीवाड़े का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। अब तक इस मामले में प्रदेश के नौ जिलों में कुल 29 एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं और 65 से अधिक लोगों को आरोपी बनाया जा चुका है। भर्ती प्रक्रिया में व्यापक स्तर पर गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए अब पुलिस मुख्यालय इस मामले की जांच स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को सौंपने पर गंभीरता से विचार कर रहा है।
फर्जीवाड़े में सक्रिय संगठित गिरोह का शक
अभी तक की जांच में जो तथ्य सामने आए हैं, उनके अनुसार इस फर्जीवाड़े के पीछे एक संगठित नेटवर्क काम कर रहा था। अधिकांश मुख्य आरोपित ग्वालियर-चंबल अंचल से जुड़े हुए हैं, जो साल्वरों (दूसरे की जगह परीक्षा देने वाले व्यक्ति) से लंबे समय से संपर्क में थे। बिहार के दो साल्वरों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है, जबकि अन्य की तलाश जारी है। शारीरिक दक्षता परीक्षा से लेकर लिखित परीक्षा तक, अपराधियों ने सुनियोजित तरीके से फर्जीवाड़ा किया।
एसटीएफ को सौंपने से नेटवर्क का हो सकता है भंडाफोड़
पुलिस सूत्रों का मानना है कि मामला एसटीएफ को सौंपा जाए तो संगठित गिरोह की गहराई से जांच संभव हो सकेगी। फिलहाल नौ जिलों की पुलिस इस केस की जांच कर रही है, लेकिन एक समान अपराध के तरीकों और प्रदेश भर में फैले आरोपितों के नेटवर्क को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि जांच एक विशेष एजेंसी को दी जाए। हालांकि अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा लिया जाएगा।
हर दो दिन में दर्ज हो रही नई एफआईआर
स्थिति यह है कि हर एक या दो दिन में एक नई एफआईआर दर्ज हो रही है। वर्ष 2023 में हुई इस भर्ती परीक्षा में कुल 7411 पदों के लिए परीक्षा आयोजित की गई थी, जिनमें से ओबीसी आरक्षण के कारण 13 प्रतिशत पदों को होल्ड पर रखते हुए 6423 पदों का परिणाम जारी किया गया था। इनमें से लगभग छह हजार चयनित उम्मीदवारों ने पद ज्वाइन भी कर लिया है, जिससे सरकार के सामने अब इनकी नियुक्ति की वैधता को लेकर भी चुनौती खड़ी हो गई है।
कांग्रेस ने सीबीआई जांच की मांग उठाई
इस मामले में विपक्ष भी सक्रिय हो गया है। कांग्रेस पार्टी ने फर्जीवाड़े की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है। विपक्ष का कहना है कि सरकार परीक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता लाने में विफल रही है और अब यह जरूरी हो गया है कि केंद्रीय एजेंसी पूरे मामले की तह तक जाकर दोषियों को सामने लाए।