मध्य प्रदेशराज्य

मध्य प्रदेश में ‘मेलिओइडोसिस’ का खतरा बढ़ा, लक्षणों से डॉक्टर भी हो रहे भ्रमित

भोपाल
प्रदेश में एक नए स्वास्थ्य संकट ने दस्तक दी है। यह जीवाणु (बैक्टीरिया) का संक्रमण है, जिसकी पहचान मेलिओइडोसिस बीमारी के रूप में हुई है। इसके लक्षण बिल्कुल टीबी जैसे होते हैं। अगर मरीज का गलत इलाज हो जाए तो जीवन पर खतरा हो जाता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल का दावा है कि इससे संक्रमित प्रत्येक 10 में से चार मरीजों की मौत हो जा रही है। प्रदेश के 20 जिलों में 130 मरीज इस बीमारी से संक्रमित पाए गए हैं।

मध्य प्रदेश में दो लाख से अधिक लोग मिले जो सिकल सेल पीड़ित बच्चों को दे सकते थे जन्म
पिछले दिनों राजधानी के पास रहने वाले एक 45 वर्षीय किसान को एम्स लाया गया था। वह कई महीनों से बार-बार आने वाले बुखार, खांसी और सीने में दर्द से परेशान थे। स्थानीय डाॅक्टरों ने इसे टीबी मानकर इलाज शुरू किया था। महीनों तक दवा खाने के बाद भी जब उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, तो थक-हारकर उन्हें एम्स भोपाल लाया गया। यहां जब माइक्रोबाॅयोलाजी विभाग ने गहराई से जांच की, तो पता चला कि उन्हें टीबी नहीं, बल्कि मेलिओइडोसिस है। सही बीमारी पकड़ में आने के बाद मरीज ठीक हो गया।

    एम्स के विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले छह वर्षों से इस बीमारी पर वह नजर बनाए हुए हैं।
    प्रदेश में अब तक 20 जिलों में 130 से ज्यादा मरीजों की पहचान हो चुकी है।
    यह बीमारी अब किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रही, बल्कि पूरे प्रदेश में फैल रही है।
    सही समय पर इसकी पहचान न हो पाने के कारण यह जानलेवा भी साबित हो सकती है।
    क्योंकि इसके लक्षण टीबी जैसे होने के कारण अक्सर डाॅक्टर भी धोखा खा जाते हैं।

यह होता है मेलिओइडोसिस
    मेलिओइडोसिस एक संक्रामक बीमारी है जो 'बर्कहोल्डरिया स्यूडोमल्ली' नामक बैक्टीरिया से होती है। यह बैक्टीरिया आमतौर पर मिट्टी और पानी में पाया जाता है।
    विशेषज्ञों के अनुसार, यह बीमारी अब प्रदेश में स्थानिक (एंडेमिक) हो चुकी है, यानी यहीं के वातावरण में स्थायी रूप से मौजूद है।

किसान और मधुमेह रोगी होते हैं आसान शिकार
    बताया गया कि इसका सबसे अधिक खतरा ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-किसानी से जुड़े लोगों को होता है, क्योंकि उनका सीधा संपर्क मिट्टी और पानी से होता है।
    शहरी इलाकों में डायबिटीज(मधुमेह) के मरीजों और अधिक शराब का सेवन करने वालों को भी यह बीमारी आसानी से अपनी चपेट में ले सकती है।

डाॅक्टरों को प्रशिक्षित कर रहा एम्स
    एम्स का माइक्रोबायोलाजी विभाग प्रदेश भर के डाॅक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को इस बीमारी की सही और समय पर पहचान के लिए प्रशिक्षित कर रहा है।
    पिछले ढाई सालों में 25 सरकारी और निजी अस्पतालों के 50 से ज्यादा विशेषज्ञों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
    इस प्रशिक्षण का ही नतीजा है कि अब प्रदेश के अन्य अस्पतालों से भी 14 नए मामले सामने आए हैं, जिनका सही इलाज संभव हो पाया है। 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button