मध्य प्रदेशराज्य

MP में खेती का रकबा घटा, लेकिन रासायनिक खाद की खपत पहुंची रिकॉर्ड स्तर पर

भोपाल
मध्य प्रदेश में खेती का रकबा हर साल घटने के बावजूद रासायनिक खाद की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। जैविक खेती के मामले में देश में पहले स्थान पर होने के बाद भी किसानों की रासायनिक खाद पर बढ़ती निर्भरता चिंताजनक है। कृषि विज्ञानियों का कहना है कि जिस तरह से अधिक उत्पादन के लिए मृदा की गुणवत्ता से खिलवाड़ किया जा रहा है, वह खतरनाक है।

रासायनिक खाद के बढ़ते उपयोग से हर फसल सीजन में खाद की किल्लत की सूचनाएं आम हो चली हैं। वर्ष 2022-23 में 149.53 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ फसलें बोई गई थीं जो 2025-26 में 146 लाख हेक्टेयर रह गईं। इससे उलट इस अवधि में खाद का उपयोग 29 लाख टन से बढ़कर 33.29 लाख टन (सितंबर प्रथम सप्ताह) पहुंच चुका है।
जैविक फसल उत्पादन में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत

देश में जैविक खेती के मामले में मध्य प्रदेश सबसे आगे है। कुल जैविक उत्पादन में 40 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश से आता है। देश में 65 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती होती है जिसमें 16 लाख हेक्टेयर मध्य प्रदेश का है फिर भी विरोधाभास यह है कि किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता बढ़ रही है। वर्ष 2022-23 से 2025-26 के बीच खरीफ फसल का क्षेत्र साढ़े तीन लाख हेक्टेयर घट गया लेकिन खाद की खपत 4.29 लाख टन बढ़ गई।

रासायनिक खाद-कीटनाशकों के नुकसान को देखते हुए वर्ष 2011 में तत्कालीन शिवराज सरकार ने जैविक खेती को प्रोत्साहित करने विशेष नीति बनाई थी। इसका लाभ यह हुआ कि मध्य प्रदेश जैविक उत्पादन के मामले में नंबर एक पर पहुंच गया।

विशेषज्ञों की राय : दूरगामी परिणाम ठीक नहीं

    उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान अधिक खाद का उपयोग करता है। तात्कालिक रूप से भले ही इससे लाभ मिलता है लेकिन दूरगामी परिणाम ठीक नहीं होते। मृदा की उर्वरा शक्ति तो प्रभावित होती ही है, भूजल पर भी असर पड़ता है। जो उपज होती है, उसकी गुणवत्ता भी ठीक नहीं होती। – डॉ. जीएस कौशल, पूर्व कृषि संचालक, मध्य प्रदेश

शरीर का हर अंग होता है प्रभावित

    रासायनिक खाद के माध्यम से एक सीमा से अधिक रसायन मानव शरीर में पहुंचने पर हर सिस्टम पर असर होता है। सबसे अधिक दुष्प्रभाव पेट पर पड़ता है। पेट संबंधी कई बीमारियों के बाद इसका प्रभाव अन्य अंगों पर भी होने लगता है। पोषक तत्व घटने से शरीर में विटामिन व मिनरल्स की कमी होती है। किडनी पर भी असर होता है। कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। – डॉ. आर.आर. वर्डे, सह प्राध्यापक, मेडिसिन

 

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