नई दिल्ली
सपने अक्सर उन्हीं के सच होते हैं, जो उन्हें पूरा करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं. दुनियाभर में ताकत का प्रतीक माना जाने वाला अमेरिका भी आज हाइपरसॉनिक मिसाइल बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है. लेकिन भारत जो कभी तकनीकी क्षमता में दुनिया की दौड़ में पीछे समझा जाता था, वही आज 3-3 महामिसाइल बनाकर पूरी दुनिया को चुनौती दे रहा है.
प्रोजेक्ट ध्वनि के तहत हाइपरसॉनिक मिसाइल
तकनीकी क्षमता में पीछे रहने वाले देश को आज दुनिया की अग्रणी सूची में गिना जाता है. इसका श्रेय भारत के वैज्ञानिकों का जुनून और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की मेहनत को जाता है. DRDO के वैज्ञानिकों ने प्रोजेक्ट ध्वनि के तहत ऐसे हाइपरसॉनिक हथियार बनाए है, जिन्हें रोक पाना अब नामुमकिन है.
ध्वनि की गति से भी तेज होते हैं हाइपरसॉनिक मिसाइल
दरअसल, हाइपरसॉनिक मिसाइल उन हथियारों को कहा जाता है जो कि ध्वनि की गति से पांच गुणा तेज यानी 6,200 प्रति घंटे की रफ्तार से उड़कर अपने लक्ष्य पर हमला करते हैं. इनकी तेज रफ्तार और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले खासियत के बदौलत ये हाइपरसॉनिक मिसाइल बेहद खतरनाक हो जाते हैं, जिसे कोई भी रडार पकड़ नहीं सकता है. DRDO की यह हाइपरसॉनिक तकनीक पूरी तरह से स्वदेशी है. हाइपरसॉनिक मिसाइल रॉकेट इंजन के जरिए लॉन्च होता है और वातावरण में 6 से 7 Mach की गति से उड़ता है. वहीं, 1,500 किलोमीटर से अधिक की रेंज में पेलोड ले जाने में सक्षम है.
भारत के तीनों सेनाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है हाइपरसॉनिक मिसाइल
ध्वनि की गति से 5 गुना तेज उड़ने, किसी भी रडार के पकड़ में न आने वाली खासियत से यह हाइपरसॉनिक मिसाइल भारत की तीनों सेना (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) के लिए अत्यंत उपयोगी है. इसमें मिसाइल में स्क्रैमजेट इंजन का इस्तेमाल होता है, जो उड़ान के दौरान मिसाइल की गति को बनाए रखता है. भारत का ब्रह्मोस-2 इस हाइपरसॉनिक तकनीक का सटीक उदाहरण है. बता दें कि DRDO अभी तीन अलग-अलग डिजाइनों पर काम कर रहा है.
पाकिस्तान और चीन की अब खैर नहीं
उल्लेखनीय है कि भारत ने एक बार गलती से पाकिस्तान की ओर एक ब्रह्मोस मिसाइल दाग दी थी, जिसे पाकिस्तान ट्रैक नहीं कर पाया था. वहीं, अब ब्रह्मोस-2 और प्रोजेक्ट ध्वनि की हाइपरसॉनिक मिसाइलों के सामने पाकिस्तान तो क्या चीन और अमेरिका के डिफेंस सिस्टम भी पूरी तरह से बेबस नजर आ रहे हैं. जहां अमेरिका अब तक अपने हाइपरसॉनिक प्रोग्राम को सफलता नहीं दिला पाया, वहीं भारत रूस के साथ मिलकर इस तकनीक में महारथ हासिल कर ली है.