विदेश

पूर्व अमेरिकी अधिकारी बोले: भारत की अहमियत ट्रंप को अच्छे से समझा दी

वाशिंगटन 
भारत और अमेरिका के बीच संबंध इस समय अभूतपूर्व तनाव के दौर से गुजर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय आयात पर भारी टैरिफ लगाने के बाद दोनों देशों के बीच जारी व्यापार वार्ता ठप हो गई है। इस बीच बाइडेन प्रशासन के दौर के पूर्व शीर्ष अमेरिकी अधिकारी- पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जेक सुलिवन और पूर्व उप-विदेश सचिव कर्ट एम. कैंपबेल ने चेतावनी दी है कि अगर मौजूदा स्थिति बनी रही तो वॉशिंगटन एक अहम रणनीतिक साझेदार खो सकता है और चीन को इनोवेशन के क्षेत्र में बढ़त मिल सकती है। उन्होंने ये भी चेतावनी दी कि भारत की तुलना पाकिस्तान के साथ नहीं की जानी चाहिए क्योंकि भारत कहीं ज्यादा जरूरी है।

विदेश नीति पर लेख में जताई चिंता
‘फॉरेन अफेयर्स’ मैग्जीन में लिखे अपने संयुक्त संपादकीय में सुलिवन और कैंपबेल ने कहा कि भारत-अमेरिका साझेदारी को लंबे समय से द्विदलीय समर्थन मिला है और इस रिश्ते ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की “लापरवाह आक्रामकता” को हतोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अमेरिकी सहयोगियों से कहा कि वे भारत को समझाएं कि “राष्ट्रपति ट्रंप की नाटकीय बयानबाजी में अक्सर किसी सौदेबाजी की भूमिका होती है।”

भारत को ‘प्रतिद्वंद्वियों की ओर धकेलने’ का खतरा
दोनों पूर्व अधिकारियों ने लिखा कि ट्रंप प्रशासन की नीतियों- 50% तक टैरिफ, रूस से तेल खरीद और पाकिस्तान पर बढ़ते तनाव ने दोनों देशों के रिश्तों में तेज गिरावट ला दी है। हाल में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ हुई बैठक का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि अगर यही स्थिति रही तो अमेरिका, भारत को प्रतिद्वंद्वियों की ओर धकेल देगा।

पाकिस्तान नीति को भारत से अलग रखने की सलाह
सुलिवन और कैंपबेल ने अमेरिका को सलाह दी कि वह अपनी विदेश नीति में “भारत-पाकिस्तान” की एक साथ तुलना न करे। उनका कहना था कि पाकिस्तान के साथ आतंकवाद से निपटने और परमाणु हथियार प्रसार को रोकने जैसी अहम चिंताएं हैं, लेकिन ये भारत से जुड़े बहुआयामी और दीर्घकालिक हितों के मुकाबले कहीं कम महत्व रखती हैं।

अमेरिका-पाकिस्तान में नजदीकी और भारत पर टैरिफ
ट्रंप हाल ही में भारत-पाकिस्तान संघर्ष में संघर्षविराम का श्रेय लेते दिखे थे, जबकि भारत ने इसका खंडन किया था। इसके बाद पाकिस्तान के आर्मी चीफ फील्ड मार्शल असीम मुनीर का वाइट हाउस में स्वागत किया गया और अमेरिका ने पाकिस्तान को व्यापार, आर्थिक विकास और क्रिप्टोकरेंसी सहयोग का आश्वासन दिया। कुछ दिनों बाद ही अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ तेल समझौते की घोषणा की और उसी समय भारत के सामान पर 25% तक का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया।

नई रणनीतिक संधि का प्रस्ताव
सुलिवन और कैंपबेल ने दावा किया कि भारत-अमेरिका के बीच नई रणनीतिक साझेदारी एक संधि के रूप में होनी चाहिए, जिसे अमेरिकी सीनेट की मंजूरी मिले। यह संधि पांच प्रमुख स्तंभों पर आधारित होगी और इसका लक्ष्य दोनों देशों की सुरक्षा, समृद्धि और साझा मूल्यों को मजबूत करना होगा।

तकनीकी साझेदारी पर जोर
उन्होंने सुझाव दिया कि भारत और अमेरिका को 10 वर्षीय कार्ययोजना पर सहमत होना चाहिए, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), सेमीकंडक्टर, बायोटेक्नोलॉजी, क्वांटम, स्वच्छ ऊर्जा, दूरसंचार और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों में तकनीकी साझेदारी शामिल हो। इसका उद्देश्य साझा तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना होगा, ताकि अमेरिका और उसके लोकतांत्रिक सहयोगी चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों को नवाचार के क्षेत्र में बढ़त न लेने दें। संपादकीय में कहा गया है कि दोनों देशों को “प्रमोट” एजेंडा (साझा निवेश, अनुसंधान एवं विकास और प्रतिभा साझेदारी) और “प्रोटेक्ट” एजेंडा (निर्यात नियंत्रण और साइबर सुरक्षा सहयोग) दोनों पर मिलकर काम करना होगा।
 
रणनीतिक साझेदारी का महत्व
पूर्व अमेरिकी अधिकारियों ने याद दिलाया कि भारत पिछले एक पीढ़ी से अमेरिका का सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक साझेदार बनकर उभरा है। उन्होंने भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते (जॉर्ज डब्ल्यू. बुश और मनमोहन सिंह के बीच) और बाइडेन-मोदी के बीच एआई, जैव प्रौद्योगिकी और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों में सहयोग का उल्लेख किया। उन्होंने तर्क दिया कि भारत के साथ साझेदारी ने "इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के लापरवाह हरकतों को प्रभावी ढंग से हतोत्साहित किया है।"

 

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