
नई दिल्ली
मोबाइल टावर उपकरणों की चोरी व अवैध निर्यात करने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ कर क्राइम ब्रांच ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार है। इनके कब्जे से 30 महंगी रिमोट रेडियो यूनिट बरामद की गई है। इनकी गिरफ्तारी से पुलिस ने दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दर्ज रिमोट रेडियो यूनिट चोरी के 16 मामले सुलझाने का दावा किया है। चोरी में राजस्थान के एक मोबाइल टावर इंस्टालेशन ठेकेदार की संलिप्तता का पता चला है। यह गिरोह अंतरराष्ट्रीय कोरियर कंपनियों के जरिये हांगकांग और फिर चीन तक उपकरणों की तस्करी कर रहा है। वहां रिमोट रेडियो यूनिट ऊंचे दामों पर बिक जाता है। डीसीपी विक्रम सिंह के मुताबिक गिरफ्तार किए गए आरोपियों के नाम जाहिद (जाफराबाद), चंद्रकांत उर्फ अतुल (नांगल राय,दिल्ली) व समीर उर्फ मोहम्मद आफताब (मेटियाब्रुज, कोलकाता) है।
रिमोट रेडियो यूनिट, जिसे रिमोट रेडियो हेड के नाम से भी जाना जाता है। यह मोबाइल टावर का एक महत्वपूर्ण उपकरण होता है। यह डिवाइस वायरलेस नेटवर्क और मोबाइल उपकरणों को जोड़ने का काम करता है। देश में रिमोट रेडियो यूनिट की चोरी की घटनाएं बढ़ गई हैं। चोरी के लिए चोर नए-नए तरीके अपना रहे हैं। क्राइम ब्रांच को सूचना मिलने पर इंस्पेक्टर गुरमीत की टीम ने इस संगठित गिरोह का तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। इनसे पूछताछ में अंतरराज्यीय व अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का पता चला।
जाहिद और चंद्रकांत की निशानदेही पर चोरी के 10 रिमोट रेडियो यूनिट बरामद हुए। इनमें दो रिमोट रेडियो यूनिट दिल्ली, आंध्र प्रदेश व तीन राजस्थान से चोरी के पाए गए। दोनों से पूछताछ के बाद समीर को कोलकाता से गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी निशानदेही पर शिपिंग लाइन प्राइवेट लिमिटेड, महिपालपुर से चोरी के 20 रिमोट रेडियो यूनिट बरामद किए गए। यह खेप हांगकांग भेजने की तैयारी में थी। पूछताछ में उसने बताया कि चोरी किए गए उपकरणों को कार्गो के माध्यम से हांगकांग भेजा जाता है, वहां से चीन में तस्करी की जाती है।
वहां उपकरण ऊंचे दामों पर बिक जाता है। इससे पूछताछ में गिरोह में राजस्थान के एक मोबाइल टावर इंस्टालेशन ठेकेदार के शामिल होने का पता चला। जिसके बाद सीकर और जयपुर में भी छापेमारी की। मोबाइल टावर इंस्टालेशन ठेकेदार और उसके स्टाफ को इन उपकरणों की इंस्टालेशन और हटाने की तकनीकी जानकारी है। जिससे चोरी के बाद राजस्थान रोडवेज बस सेवाओं के जरिये उपकरणों को दिल्ली लाया जाता था।
दिल्ली पहुंचने के बाद उन्हें कार्गो एजेंट्स के माध्यम से हांगकांग भेजा जाता था, जहां दस्तावेजों में उन्हें "एम्प्लीफायर" के नाम से दर्ज किया जाता था। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय कोरियर कंपनियों के जरिए हांगकांग और फिर चीन तक तस्करी की जाती थी।