देश

नारायण सेवा संस्थान का 43वां नि:शुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह सम्मेलन 8 और 9 फरवरी को, 51 जोड़े लेंगे सात फेरे

उदयपुर
नारायण सेवा संस्थान का 43वां नि:शुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि उन जिंदगियों के सपनों को सच करने का प्रयास है, जिन्हें समाज ने अक्सर अधूरा मान लिया। 8 और 9 फरवरी को सेवा महातीर्थ में जब 51 जोड़े सात फेरे लेंगे, तो यह सिर्फ एक विवाह नहीं, बल्कि संघर्ष, साहस और प्रेम की मिसाल बनेगा। संस्थान अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने बताया कि विवाह में शामिल 28 जोड़े विभिन्न दिव्यांगता से ग्रस्त हैं, जबकि 23 जोड़े आर्थिक रूप से कमजोर हैं। इनके जीवन की कहानियां संघर्ष और संकल्प से भरी हैं, जो किसी के भी हृदय को छू सकती हैं।

व्हाट्सएप से जुड़ी तक़दीरें, अब जन्मों का साथ
टीकमगढ़ (म.प्र.) के धर्मदास पाल (35), जो जन्म से ही दोनों हाथों से दिव्यांग हैं, ने कभी भी अपनी कमजोरी को जीवन पर हावी नहीं होने दिया। कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी करने वाले धर्मदास की मुलाकात धार (म.प्र.) की रेशमा परमार (32) से व्हाट्सएप के दिव्यांग ग्रुप में हुई। रेशमा, जो एक साल की उम्र में पोलियो के कारण कमर से नीचे दिव्यांग हो गईं, मगर आत्मनिर्भरता की मिसाल बनीं। धीरे-धीरे बातचीत बढ़ी, समझ और अपनापन गहराता गया। लेकिन जब शादी की बात आई, तो आर्थिक तंगी दीवार बन गई। तब नारायण सेवा संस्थान ने आगे बढ़कर इन्हें अपने नि:शुल्क विवाह समारोह में शामिल कर एक नई जिंदगी का अवसर दिया।

छत्तीसगढ़ के सोमनाथ धृतलहरे (28), जो एक सड़क हादसे में अपना एक हाथ खो चुके थे, और सेंदरी जैजैपुर की राखी, जो जन्म से ही दोनों पैरों और एक आंख से दिव्यांग थीं, की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। एक ‘दिव्यांग पैदल मार्च’ में हुई मुलाकात ने इन्हें जन्म-जन्मांतर के रिश्ते में बांध दिया।

सोमनाथ ने नारायण सेवा संस्थान से कृत्रिम हाथ लगवाया और मोबाइल रिपेयरिंग का प्रशिक्षण लिया। अब वे आत्मनिर्भर हैं और अपने परिवार को आर्थिक संबल दे रहे हैं। उधर, राखी के पैरों का सफल ऑपरेशन संस्थान में हुआ, जिससे अब वह कैलिपर्स की मदद से चल सकती हैं। इन दोनों के जीवन में आई मुश्किलों के बादल अब खुशी की बारिश में बदलने जा रहे हैं।

गरीबी और दिव्यांगता के आगे झुकी तक़दीर, काली बनी कचरू की लाठी
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के कचरूलाल (29), जो जन्मजात पोलियो के कारण दोनों पैरों से दिव्यांग हैं, की जिंदगी में भी नया सवेरा आने वाला है। लाठी के सहारे चलने वाले कचरूलाल को अब जीवनभर का सहारा मिल रहा है – काली कुमारी (25)। काली निर्धन परिवार से हैं, और उनके पिता मजदूरी कर किसी तरह परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। सालभर पहले सगाई तो हुई, मगर विवाह गरीबी और दिव्यांगता के कारण अधर में था। अब संस्थान के सहयोग से 9 फरवरी को दोनों एक प्राण होने जा रहे हैं।

जब उम्मीदें टूटती हैं, तब सेवा संवारती है
नारायण सेवा संस्थान पिछले दो दशक से दिव्यांगों और निर्धनों के सपनों को पंख देने का काम कर रहा है। इन 51 जोड़ों की कहानियां सिर्फ उनके संघर्ष की नहीं, बल्कि यह संदेश भी देती हैं कि प्यार किसी भी सीमा का मोहताज नहीं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button