
बेंगलुरु
कांग्रेस शासित कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को ऐलान किया कि राज्य में 22 सितंबर से 7 अक्टूबर के बीच दशहरा की छुट्टियों के दौरान एक नया सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि 2015 में की गई जाति जनगणना को सरकार ने नामंजूर कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछली जनगणना के आंकड़े एक दशक पुराने हो चुके हैं, इसलिए समाज की मौजूदा स्थिति को समझने के लिए नई जाति जनगणना जरूरी हो गई है।
मुख्यमंत्री ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, "समाज में कई धर्म और जातियाँ हैं। विविधता और असमानता भी है। संविधान कहता है कि सभी के साथ समान व्यवहार होने चाहिए और सामाजिक न्याय होना चाहिए।" उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नया सर्वेक्षण असमानताओं को दूर करने और लोकतंत्र की मज़बूत नींव रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
2 करोड़ परिवारों को किया जाएगा शामिल
कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किए जाने वाले इस सर्वे में राज्य के लगभग 2 करोड़ परिवारों के तहत आनेवाली करीब 7 करोड़ पूरी आबादी को शामिल किए जाने की उम्मीद है। इस सर्वे के दौरान हरेक परिवार को एक विशिष्ट घरेलू पहचान पत्र (UID) स्टिकर दिया जाएगा। इनमें से अब तक 1.55 करोड़ घरों पर ये स्टिकर चिपकाए जा चुके हैं। परिवारों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षिक स्थिति का विवरण एकत्र करने के लिए 60 प्रश्नों वाली एक प्रश्नावली भी तैयार की गई है।
हरेक को 20,000 रुपये तक का मानदेय
रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण के लिए दशहरा की छुट्टियों के दौरान 1.85 लाख सरकारी शिक्षकों को तैनात किया जाएगा। इस काम के लिए हरेक को 20,000 रुपये तक का मानदेय मिलेगा, जिससे शिक्षकों के पारिश्रमिक के लिए कुल आवंटन 325 करोड़ रुपये हो जाएगा। राज्य ने इस पूरी प्रक्रिया के लिए 420 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं, जो 2015 की जाति जनगणना के दौरान खर्च किए गए 165 करोड़ रुपये से ढाई गुना से भी ज़्यादा है।
बिजली मीटर के नंबरों की होगी जियो-टैगिंग
रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे के दौरान हरेक घर को बिजली मीटर के नंबरों से जियो-टैग किया जाएगा, और मोबाइ नंबों को राशन कार्ड और आधार से जोड़े जाएँगे। जो लोग सर्वे कर्मियों को अपनी जाति का विवरण नहीं देना चाहते, उनके लिए एक समर्पित हेल्पलाइन (8050770004) पर कॉल करके या ऑनलाइन जानकारी देने के विकल्प भी उपलब्ध कराए गए हैं।
दिसंबर 2025 तक आएगी रिपोर्ट
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने नागरिकों से पूर्ण सहयोग देने का आग्रह किया। मधुसूदन नाइक की अध्यक्षता वाले आयोग को वैज्ञानिक और समावेशी तरीके से सर्वेक्षण करने का काम सौंपा गया है। उम्मीद है कि आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट दिसंबर 2025 तक सौंप देगा। बता दें कि इससे पहले कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग ने सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण 2015 रिपोर्ट तैयार की थी। इसे 17 अप्रैल को सिद्धारमैया कैबिनेट में पेश किया जाना था। लेकिन उससे पहले ही यह लीक हो गई थी, जिस पर विवाद मच गया था और रिपोर्ट पेश नहीं हो पाई।
पिछली जातीय गणना पर उठे थे सवाल
राज्य के सबसे प्रभावशाली वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत समुदाय ने भी उस सर्वे पर सवाल उठाते हुए सिद्धारमैया सरकार को कठघरे में खड़ा किया था। आयोग ने बताया था कि उसने राज्य की 6.35 करोड़ आबादी में से 5.98 करोड़ लोगों के बीच सर्वे कर ये रिपोर्ट बनाई है। इन दोनों समुदायों ने आरोप लगाया था कि उनकी आबादी घटाकर बताई गई है।
कांग्रेस सरकार का महीने भर में तीसरा दांव
दरअसल, कर्नाटक में अगले कुछ महीनों में स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं। उससे पहले इस सर्वे को सिद्धारमैया सरकार का एक दांव माना जा रहा है। एक तरफ इस सर्वे से वह वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत समुदाय की नाराजगी दूर करने जा रहे हैं तो दूसरी तरफ राज्य के अन्य ओबीसी, SC/ST वर्ग को भी साधने की कोशिशों में जुटे हैं। इससे पहले वह इसी महीने अल्पसंख्यक महिलाओं के लैंगिक सर्वेक्षण का भी आदेश दे चुके हैं। इसी महीने वह स्थानीय चुनाव बैलेट पेपर से कराने की घोषणा कर चुके हैं, जिसे राज्य चुनाव आयोग ने माना लिया है। इस तरह महीने भर में यह उनका तीसरा दांव है। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस शासित राज्य में ये कवायद बिहार चुनाव से पहले कराई जा रही है। कांग्रेस इसके जरिए बिहार चुनावों में भी सियासी संदेश देने की कोशिश कर रही है।