
लुधियाना
पंजाब का शिक्षा विभाग मानो प्रयोगशाला बन गया है, जहां हर हफ्ते शिक्षकों पर कोई नया प्रयोग कर दिया जाता है। कभी ‘एनरोलमैंट ड्राइव’, कभी ‘सर्वे’, कभी ‘सड़क सुरक्षा अभियान’, तो कभी ‘स्वच्छता सप्ताह’ में अध्यापकों की ड्यूटी और अब बारी है ‘मिशन स्वस्थ कवच’ की। इस मिशन के तहत 17 अक्तूबर को होने वाली पैरेंट-टीचर मीटिंग (पी.टी.एम.) में अध्यापक न केवल बच्चों की पढ़ाई पर चर्चा करेंगे, बल्कि अभिभावकों का बी.पी. (रक्तचाप) भी जांचेंगे। यानि अब शिक्षकों की चाक छोड़कर स्टैथौस्कोप संभालने की बारी आ गई है।
जिला शिक्षा अधिकारी (सैकेंडरी) के कार्यालय से जारी पत्र ने इस बार शिक्षकों को डॉक्टर बना दिया है। आदेश के अनुसार, 17 अक्तूबर को होने वाली माता-पिता शिक्षक बैठक (पी.टी.एम.) में ‘मिशन स्वास्थ्य कवच’ के तहत स्कूलों में ब्लड प्रैशर जांच शिविर लगाए जाएंगे। इस दौरान अध्यापक और विद्यार्थी मिलकर कम से कम 100 अभिभावकों का बी.पी. 3-3 बार चेक करेंगे और उसका रिकॉर्ड गूगल फॉर्म में भरेंगे। विभाग ने कहा है कि पूरे कार्यक्रम की फोटोग्राफी कर सबूत अपने पास रखें, ताकि जरूरत पड़ने पर रिपोर्ट मांगी जा सके।
शिक्षक या स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता?
आदेश में कहा गया है कि जिन स्कूलों ने मिशन स्वास्थ्य कवच की ट्रेनिंग ली है, वे कैंप लगाकर लोगों को बी.पी. से जुड़ी जानकारी देंगे। इस पूरी प्रक्रिया की जिम्मेदारी विद्यालय के हेल्थ मेंटर को दी गई है, जो विद्यार्थियों की सहायता से जांच करवाएगा। विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि जिन्होंने अभी तक बी.पी. मशीन प्राप्त नहीं की, वे 16 अक्तूबर तक इसे ले लें, अन्यथा इसे डिप्टी कमिश्नर के आदेशों की अवहेलना माना जाएगा।
शिक्षकों में नाराजगी- ‘हम डॉक्टर नहीं, शिक्षक हैं’
इस आदेश ने शिक्षा जगत में तीखी प्रतिक्रिया पैदा कर दी है। अध्यापकों ने इसे “शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती गैर-शैक्षणिक जिम्मेदारियों” का उदाहरण बताया है। उनका कहना है कि शिक्षा विभाग अब अध्यापकों को हर प्रशासनिक प्रयोग का हिस्सा बना रहा है, जिससे पढ़ाई पर ध्यान देना कठिन होता जा रहा है। अब शिक्षक अध्यापक, सर्वेक्षक और डॉक्टर तीनों एक साथ!
जिला शिक्षा अधिकारी (स) ने आदेश जारी किया है कि हर स्कूल में पी.टी.एम. के दौरान अभिभावकों के स्वास्थ्य की जांच कर ‘मिशन स्वस्थ कवच’ की सफलता सुनिश्चित की जाए। इसके लिए शिक्षकों को ब्लड प्रेशर मशीन और बुनियादी जांच की जानकारी देने का भी निर्देश आया है। कुछ शिक्षकों ने इस पर व्यंग्य करते हुए कहा कि लगता है शिक्षा विभाग अब “सर्वगुण संपन्न अध्यापक योजना” पर काम कर रहा है। एक अध्यापक ने कहा “पहले हमें बच्चों के अंक देखने होते थे, अब अभिभावकों का ब्लड प्रेशर भी देखना होगा। अगली बार शायद डॉक्टर की तरह दवाई भी लिखनी पड़ जाए!” कई शिक्षकों का कहना है कि शिक्षण कार्य पहले ही असंख्य अतिरिक्त जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा हुआ है, और अब स्वास्थ्य जांच का नया अध्याय जुड़ गया है। “कभी सर्वे टीम में शामिल करो, कभी मतदाता सूची बनवाओ, कभी किसी योजना का प्रचार कराओ अब स्वास्थ्य सेवाओं में भी उतार दिया गया है,” एक शिक्षक ने व्यंग्य में कहा।