झारखंड/बिहारराज्य

पीएम मोदी आगमन से पहले तेजस्वी का GMCH दौरा, सीधे पूछा यह अहम सवाल

पूर्णिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 सितंबर यानी कल पूर्णिया आएंगे। लेकिन, आज पूर्णिया सुर्खियों में है। कारण है नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का औचक निरीक्षण। तेजस्वी यादव शनिवार मध्य रात्रि को अचानक पूर्णिया के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (GMCH) पहुंच गए। उन्होंने मरीजों से बातचीत की। अस्पताल का निरीक्षण किया। इसके बाद आज सुबह सोशल मीडिया पर निरीक्षण का वीडियो शेयर करते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन वाली सरकार पर जमकर हमला बोला। तेजस्वी यादव ने अस्पताल की बदहाली पर सवाल उठाए। कहा कि यह 20 वर्षों के एनडीए शासन की विफलता का उदाहरण है।

उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी से सवाल पूछा कि राजद नेता तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री से पूछा कि क्या उन्हें "डबल जंगलराज" की बदहाली, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं दिखती।  तेजस्वी ने पीएम मोदी को पूर्णिया के इस मेडिकल कॉलेज का दौरा करने की सलाह दी। पीएम को मुख्यमंत्री को भी साथ लाना चाहिए, ताकि वे 2005 से पहले की स्थिति का बहाना न दे सकें। कहा कि प्रधानमंत्री को अपनी 20 साल की बिहार और 11 साल की केंद्र सरकार की "डबल इंजन" की विफलताओं को देखना चाहिए।

उन्होंने बताया कि GMCH, जो एक मेडिकल कॉलेज है, में न तो आईसीयू (ICU) है और न ही ट्रॉमा सेंटर चालू है। साथ ही, कार्डियोलॉजी (हृदय रोग) विभाग भी मौजूद नहीं है। तेजस्वी ने आरोप लगाया कि एक ही बेड पर तीन-तीन मरीजों को लिटाया गया है और 15-20 दिनों तक बेडशीट नहीं बदली जाती, जिससे स्वच्छता की स्थिति अत्यंत खराब है। उन्होंने बताया कि अस्पताल में नर्सों के 255 स्वीकृत पदों में से केवल 55 ही कार्यरत हैं, और वे भी तीन शिफ्टों में काम करती हैं। डॉक्टरों के 80 फीसदी पद खाली हैं। इसके अलावा, अस्पताल में एक भी स्थायी ड्रेसर नहीं है, और केवल चार ऑपरेशन थिएटर सहायक हैं।

मेडिकल इंटर्न्स को छह महीने से वेतन नहीं मिला
तेजस्वी यादव ने यह भी आरोप लगाया कि 23 में से कई विभाग बंद हैं, और मेडिकल इंटर्न्स को छह महीने से वेतन नहीं मिला है।  तेजस्वी यादव ने एनडीए सरकार पर स्वास्थ्य क्षेत्र में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि सरकार हजारों करोड़ रुपये सिर्फ आलीशान इमारतें बनाने पर खर्च करती है, लेकिन डॉक्टरों, नर्सों, लैब टेक्निशियन और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं करती। वे आरोप लगाते हैं कि कमीशन के चक्कर में महंगे स्वास्थ्य उपकरण तो खरीद लिए जाते हैं, लेकिन उन्हें चलाने के लिए तकनीशियन ही नहीं हैं।

 

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