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16 कलाओं वाला चंद्रमा: जानें शरद पूर्णिमा 6-7 अक्टूबर का मुहूर्त और पूजा विधि

हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का त्योहार विशेष महत्व रखता है. मान्यता है कि साल में यह एकमात्र ऐसी रात होती है जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होकर पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है. यही कारण है कि इस रात को आसमान के नीचे खीर बनाकर रखने और अगले दिन प्रसाद रूप में ग्रहण करने की परंपरा है, जिससे आरोग्यता और सुख-समृद्धि मिलती है. इस साल शरद पूर्णिमा की तिथि को लेकर लोगों के मन में संशय है कि यह 6 अक्टूबर को मनाई जाएगी या 7 अक्टूबर को. आइए जानते हैं सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस त्योहार से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें.

शरद पूर्णिमा 2025 तिथि?
पंचांग के अनुसार, इस दिन पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 6 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगी, वहीं पूर्णिमा तिथि का समापन 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 16 मिनट पर होगा. चूंकि पूर्णिमा तिथि का आरंभ 6 अक्टूबर को हो रहा है और इस दिन चंद्रोदय भी हो रहा है, इसलिए शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजन 06 अक्टूबर 2025, सोमवार को ही किया जाएगा.

सोलह कलाओं वाला चंद्रमा और अमृत वर्षा का महत्व
शरद पूर्णिमा को सबसे महत्वपूर्ण पूर्णिमा माना जाता है क्योंकि इस दिन चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है.ये 16 कलाएं मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे – मानसिक शांति, सौंदर्य, बल, ज्ञान, और आध्यात्मिक उन्नति से जुड़ी होती हैं.

पौराणिक मान्यता: माना जाता है कि इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था.साथ ही, यह भी मान्यता है कि इस रात धन की देवी मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और देखती हैं कि कौन जाग रहा है.इसीलिए इसे ‘कोजागरी’ पूर्णिमा भी कहते हैं.

वैज्ञानिक और स्वास्थ्य महत्व: ज्योतिष और आयुर्वेद के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणें अत्यधिक शक्तिशाली होती हैं और उनमें विशेष औषधीय गुण आ जाते हैं. इस चांदनी में रखे गए दूध या चावल की खीर को ‘अमृत’ के समान माना जाता है. इस खीर को खाने से शरीर निरोगी रहता है, रोगों से मुक्ति मिलती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. इस दिन सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.घर और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें. घर के मंदिर या पूजा स्थान पर एक चौकी स्थापित करें. इस पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. धूप, दीप जलाएं और भगवान को पुष्प, फल, अक्षत, रोली और नैवेद्य अर्पित करें. मां लक्ष्मी को कमल का फूल, सफेद मिठाई और एकाक्षी नारियल अर्पित करना बहुत ही शुभ माना जाता है.

रात के समय चावल की खीर बनाकर उसे एक मिट्टी या चांदी के पात्र में भरकर खुले आसमान के नीचे (छत या आंगन में) चंद्रमा की रोशनी में रखें. रात में जागकर मां लक्ष्मी और चंद्रदेव के मंत्रों का जाप करें. इस दिन ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करने से धन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं. फिर अगली सुबह, स्नान आदि के बाद भगवान को उस खीर का भोग लगाएं और इसे प्रसाद स्वरूप पूरे परिवार के साथ ग्रहण करें. इस दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है.

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