धर्म अध्यात्म

जानें करवा चौथ की सरगी की परंपरा, महत्व और मुख्य नियम

इस साल करवाचौथ 20 अक्टूबर, रविवार को है। करवाचौथ के कई नियम हैं। इन नियमों सबसे विशेष नियम है सरगी खाने का। करवाचौथ के दिन सूर्योदय से पहले सरगी खाने का नियम है। सरगी को करवाचौथ के नियमों में सबसे विशेष माना जाता है। सरगी की परंपरा बहुत प्राचीन है। पौराणिक मान्यता है देवी पार्वती ने सबसे पहले सरगी खाई थी। आइए, विस्तार से जानते हैं इस साल सरगी खाने का शुभ समय, परंपरा और सरगी की कथा।

सरगी क्या होती है

करवाचौथ के दिन, व्रत शुरू करने के लिए सरगी नामक एक परंपरा निभाई जाती है। सरगी के बिना व्रत पूरा नहीं माना जाता है। सूर्योदय से पहले सास अपनी बहू को सरगी देती हैं। सरगी में फल, मिठाई, ड्राई फ्रूट और पूजा की सामग्री होती है। साथ ही इसमें 16 श्रृंगार का सामान भी होता है। सरगी खाकर ही महिलाएं करवाचौथ का व्रत शुरू करती हैं। सरगी सास द्वारा दी जाती है जिसमें खाने-पीने की वस्तुओं सहित 16 श्रृंगार की सभी वस्तुएं और पूजन सामग्री होती है। सरगी एक तरह से सास का आशीर्वाद और प्यार होता है।

सरगी कब खानी चाहिए, जानें सरगी का विशेष नियम

सरगी खाने का शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त है। इसका अर्थ यह है कि सरगी हमेशा सुबह 4 से 5 बजे के बीच खानी चाहिए। सरगी सूर्योदय होने से पहले ही खाई जाती है, इसलिए अगर आप किसी कारणवश लेट हो गए हैं, तो सरगी सूर्य निकलने के बाद न खाएं।

सरगी की कथा क्या है और कब से शुरू हुई परंपरा

करवाचौथ के व्रत से जुड़ी सरगी की परंपरा के पीछे दो प्रचलित पौराणिक कथाएं हैं। पहली कथा के अनुसार, जब माता पार्वती ने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था, तब उनकी मां मैना ने उन्हें सरगी दी थी क्योंकि उनकी कोई सास नहीं थी। ऐसे में यहां से इस परंपरा की शुरुआत भी हुई कि जिस महिला की सास न हो, उसे मां भी सरगी दे सकती है। सरगी की दूसरी कथा महाभारतकाल से जुड़ी है। इस कथा में द्रौपदी ने अपने पति पांडवों के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था, तो उनकी सास कुंती ने उन्हें सरगी दी थी। इस तरह, ससुराल पक्ष से सरगी देने की परंपरा भी शुरू हुई। इन दोनों कथाओं से पता चलता है कि सरगी की परंपरा कितनी प्राचीन है।

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